Powers and Functions of Governor of an Indian States in Hindi:-
राज्यपाल:
राज्यपाल या गवर्नर (अंग्रेज़ी: governor) शासन करने वाले ऐसे व्यक्ति को कहते हैं जो किसी देश के शासक के अधीन हो और उस देश के किसी भाग पर शासन कर रहा हो। संघीय देशों में संघ के राज्यों पर शासन कने वाले व्यक्तियों को अक्सर राज्यपाल का ख़िताब दिया जाता है। कुछ संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे गणतंत्रों में राज्यपाल सीधे उस राज्य की जनता द्वारा चुने जाते हैं और वह उस राज्य के सर्वोच्च प्रशासनिक अध्यक्ष होते हैं, जबकि भारत जैसे संसदीय गणतंत्रों में अक्सर राज्यपाल केन्द्रीय सरकार या शासक नियुक्त करती है और वह नाम मात्र का अध्यक्ष होता है (वास्तव में राज्य सरकार को चुना हुआ मुख्य मंत्री चलाता है, जो औपचारिक रूप से राज्यपाल के नीचे बतलाया जाता है)
राज्यपाल की शक्तिया और कार्य:
- राज्य के संवैधानिक प्रमुख के रूप में शक्तियाँ और कार्य
- केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के रूप में शक्तियाँ और कार्य
अनुच्छेद 166 से पता चलता है कि राज्य में कार्यपालिका से सम्बंधित सभी कार्य उस राज्य के राज्यपाल के नाम से ही किये जाते हैं। अनुच्छेद 164 के अनुसार राज्यपाल न केवल मुख्यमंत्री की नियुक्ति करता है बल्कि उसकी सलाह पर राज्य की मंत्रिपरिषद के अन्य मंत्रियों की भी नियुक्ति करता है।
वह सामान्यत: राज्य की विधान सभा में बहुमत प्राप्त दल के नेता को मुख्यमंत्री नियुक्त करता है, परन्तु यदि किसी एक दल को बहुमत न मिला हो तो ऐसे गठबंधन दलों के नेता को मुख्यमंत्री नियुक्त करता है जिसके द्वारा विधान सभा में बहुमत प्राप्त करने की सम्भावना होती है। वह मुख्यमंत्री की सलाह पर विभिन्न मंत्रियों के बीच मंत्रालयों का बंटवारा करता है।
राज्यपाल, राज्य के महाधिवक्ता (Advocate-General) और राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और अन्य सदस्यों को भी नियुक्त करता है।
राष्ट्रपति द्वारा किसी राज्य के उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति करते समय उस राज्य के राज्यपाल से परामर्श किया जाता है।
अनुच्छेद 163 से पता चलता है कि राज्य के संवैधानिक प्रमुख के रूप में अपने कार्यों को पूरा करते समय राज्यपाल को राज्य की मंत्रिपरिषद, जिसका प्रधान मुख्य मंत्री होता है, के द्वारा सहायता और सलाह दी जाती है।
(2) विधायी शक्तियाँ (Legislative Powers):
चूँकि राज्यपाल, राज्य के विधानमंडल का अभिन्न अंग होता है इसलिए उसके पास कुछ विधायी शक्तियाँ भी होती हैं।
राज्यपाल को राज्य के विधानमंडल के सत्र को बुलाने और समाप्त करने का अधिकार होता है। वह राज्य के मंत्रिपरिषद की सलाह पर राज्य विधान सभा को भंग कर सकता है।
अनुच्छेद 175 के अनुसार वह राज्य विधान सभा के सत्र को, और जिस राज्य में दो सदन हैं वहां दोनों सदनों के संयुक्त सत्र को संबोधित कर सकता है। वह किसी एक सदन या दोनों सदनों को अपना सन्देश भेज सकता है।
अनुच्छेद 333 से पता चलता है कि यदि राज्य की विधान सभा के साधारण निर्वाचन के बाद राज्यपाल को यह लगता है की विधान सभा में आंग्ल-भारतीय समुदाय का प्रतिनिधित्व आवश्यक है और उसमे उस समुदाय का प्रतिनिधित्व पर्याप्त नहीं है तो वह विधान सभा में उस समुदाय के एक सदस्य को नाम-निर्देशित कर सकता है।
यदि राज्य में विधान परिषद है तो राज्यपाल विधान परिषद् की कुल सदस्य संख्या के लगभग 1/6 भाग को नामनिर्देशित करता है। ये नामनिर्देशित सदस्य ऐसे होते हैं जिनको साहित्य, विज्ञान, कला, सहकारी आन्दोलन या समाज सेवा का विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव होता है।
राज्य के विधानमंडल के द्वारा पारित किसी भी बिल को क़ानून बनने के लिए राज्यपाल की सहमति जरूरी होती है। इस सन्दर्भ में, राज्यपाल के पास निम्नलिखित अधिकार होते हैं:-
- वह बिल को अपनी सहमति दे सकता है, इस स्थिति में वह बिल कानून बन जाता है।
- वह बिल पर अपनी सहमति रोक सकता है, इस स्थिति में वह बिल कानून नहीं बन पाता।
- वह उस बिल को अपने सन्देश के साथ वापस भेज सकता है, परन्तु यदि विधानमंडल उस बिल को पुन: उसी रूप में या कुछ परिवर्तनों के साथ पारित कर देता है तो राज्यपाल को उस पर सहमति देना होगा।
- वह बिल को राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रख सकता है।
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